Devi Mahatmyam Durga Saptasati Chapter 11 In Sanskrit And English

Devi Mahatmyam Navaavarna Vidhi Stotram was wrote by Rishi Markandeya.

॥ Devi Mahatmyam Durga Saptasati Chapter 11 Stotram Sanskrit Lyrics ॥

नारायणीस्तुतिर्नाम एकादशो‌உध्यायः ॥

ध्यानं
ॐ बालार्कविद्युतिम् इन्दुकिरीटां तुङ्गकुचां नयनत्रययुक्ताम् ।
स्मेरमुखीं वरदाङ्कुशपाशभीतिकरां प्रभजे भुवनेशीम् ॥

ऋषिरुवाच ॥ 1 ॥

देव्या हते तत्र महासुरेन्द्रे
सेन्द्राः सुरा वह्निपुरोगमास्ताम्।
कात्यायनीं तुष्टुवुरिष्टलाभा-
द्विकासिवक्त्राब्ज विकासिताशाः ॥ 2 ॥

देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद
प्रसीद मातर्जगतो‌உभिलस्य।
प्रसीदविश्वेश्वरि पाहिविश्वं
त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य ॥ 3 ॥

आधार भूता जगतस्त्वमेका
महीस्वरूपेण यतः स्थितासि
अपां स्वरूप स्थितया त्वयैत
दाप्यायते कृत्स्नमलङ्घ्य वीर्ये ॥ 4 ॥

त्वं वैष्णवीशक्तिरनन्तवीर्या
विश्वस्य बीजं परमासि माया।
सम्मोहितं देविसमस्त मेतत्-
त्त्वं वै प्रसन्ना भुवि मुक्तिहेतुः ॥ 5 ॥

विद्याः समस्तास्तव देवि भेदाः।
स्त्रियः समस्ताः सकला जगत्सु।
त्वयैकया पूरितमम्बयैतत्
काते स्तुतिः स्तव्यपरापरोक्तिः ॥ 6 ॥

सर्व भूता यदा देवी भुक्ति मुक्तिप्रदायिनी।
त्वं स्तुता स्तुतये का वा भवन्तु परमोक्तयः ॥ 7 ॥

सर्वस्य बुद्धिरूपेण जनस्य हृदि संस्थिते।
स्वर्गापवर्गदे देवि नारायणि नमो‌உस्तुते ॥ 8 ॥

कलाकाष्ठादिरूपेण परिणाम प्रदायिनि।
विश्वस्योपरतौ शक्ते नारायणि नमोस्तुते ॥ 9 ॥

सर्व मङ्गल माङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणि नमो‌உस्तुते ॥ 10 ॥

सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्तिभूते सनातनि।
गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमो‌உस्तुते ॥ 11 ॥

शरणागत दीनार्त परित्राणपरायणे।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमो‌உस्तुते ॥ 12 ॥

हंसयुक्त विमानस्थे ब्रह्माणी रूपधारिणी।
कौशाम्भः क्षरिके देवि नारायणि नमो‌உस्तुते ॥ 13 ॥

त्रिशूलचन्द्राहिधरे महावृषभवाहिनि।
माहेश्वरी स्वरूपेण नारायणि नमो‌உस्तुते ॥ 14 ॥

मयूर कुक्कुटवृते महाशक्तिधरे‌உनघे।
कौमारीरूपसंस्थाने नारायणि नमोस्तुते ॥ 15 ॥

शङ्खचक्रगदाशार्ङ्गगृहीतपरमायुधे।
प्रसीद वैष्णवीरूपेनारायणि नमो‌உस्तुते ॥ 16 ॥

गृहीतोग्रमहाचक्रे दंष्त्रोद्धृतवसुन्धरे।
वराहरूपिणि शिवे नारायणि नमोस्तुते ॥ 17 ॥

नृसिंहरूपेणोग्रेण हन्तुं दैत्यान् कृतोद्यमे।
त्रैलोक्यत्राणसहिते नारायणि नमो‌உस्तुते ॥ 18 ॥

किरीटिनि महावज्रे सहस्रनयनोज्ज्वले।
वृत्रप्राणहारे चैन्द्रि नारायणि नमो‌உस्तुते ॥ 19 ॥

शिवदूतीस्वरूपेण हतदैत्य महाबले।
घोररूपे महारावे नारायणि नमो‌உस्तुते ॥ 20 ॥

दंष्त्राकराल वदने शिरोमालाविभूषणे।
चामुण्डे मुण्डमथने नारायणि नमो‌உस्तुते ॥ 21 ॥

लक्ष्मी लज्जे महाविध्ये श्रद्धे पुष्टि स्वधे ध्रुवे।
महारात्रि महामाये नारायणि नमो‌உस्तुते ॥ 22 ॥

मेधे सरस्वति वरे भूति बाभ्रवि तामसि।
नियते त्वं प्रसीदेशे नारायणि नमो‌உस्तुते ॥ 23 ॥

सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमो‌உस्तुते ॥ 24 ॥

एतत्ते वदनं सौम्यं लोचनत्रयभूषितम्।
पातु नः सर्वभूतेभ्यः कात्यायिनि नमो‌உस्तुते ॥ 25 ॥

ज्वालाकरालमत्युग्रमशेषासुरसूदनम्।
त्रिशूलं पातु नो भीतिर्भद्रकालि नमो‌உस्तुते ॥ 26 ॥

हिनस्ति दैत्यतेजांसि स्वनेनापूर्य या जगत्।
सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्यो नः सुतानिव ॥ 27 ॥

असुरासृग्वसापङ्कचर्चितस्ते करोज्वलः।
शुभाय खड्गो भवतु चण्डिके त्वां नता वयम् ॥ 28 ॥

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रोगानशेषानपहंसि तुष्टा
रुष्टा तु कामा सकलानभीष्टान्
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां।
त्वामाश्रिता श्रयतां प्रयान्ति ॥ 29 ॥

एतत्कृतं यत्कदनं त्वयाद्य
दर्मद्विषां देवि महासुराणाम्।
रूपैरनेकैर्भहुधात्ममूर्तिं
कृत्वाम्भिके तत्प्रकरोति कान्या ॥ 30 ॥

विद्यासु शास्त्रेषु विवेक दीपे
ष्वाद्येषु वाक्येषु च का त्वदन्या
ममत्वगर्ते‌உति महान्धकारे
विभ्रामयत्येतदतीव विश्वम् ॥ 31 ॥

रक्षांसि यत्रो ग्रविषाश्च नागा
यत्रारयो दस्युबलानि यत्र।
दवानलो यत्र तथाब्धिमध्ये
तत्र स्थिता त्वं परिपासि विश्वम् ॥ 32 ॥

विश्वेश्वरि त्वं परिपासि विश्वं
विश्वात्मिका धारयसीति विश्वम्।
विश्वेशवन्ध्या भवती भवन्ति
विश्वाश्रया येत्वयि भक्तिनम्राः ॥ 33 ॥

देवि प्रसीद परिपालय नो‌உरि
भीतेर्नित्यं यथासुरवदादधुनैव सद्यः।
पापानि सर्व जगतां प्रशमं नयाशु
उत्पातपाकजनितांश्च महोपसर्गान् ॥ 34 ॥

प्रणतानां प्रसीद त्वं देवि विश्वार्ति हारिणि।
त्रैलोक्यवासिनामीड्ये लोकानां वरदा भव ॥ 35 ॥

देव्युवाच ॥ 36 ॥

वरदाहं सुरगणा परं यन्मनसेच्चथ।
तं वृणुध्वं प्रयच्छामि जगतामुपकारकम् ॥ 37 ॥

देवा ऊचुः ॥ 38 ॥

सर्वबाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि।
एवमेव त्वयाकार्य मस्मद्वैरि विनाशनम् ॥ 39 ॥

देव्युवाच ॥ 40 ॥

वैवस्वते‌உन्तरे प्राप्ते अष्टाविंशतिमे युगे।
शुम्भो निशुम्भश्चैवान्यावुत्पत्स्येते महासुरौ ॥ 41 ॥

नन्दगोपगृहे जाता यशोदागर्भ सम्भवा।
ततस्तौनाशयिष्यामि विन्ध्याचलनिवासिनी ॥ 42 ॥

पुनरप्यतिरौद्रेण रूपेण पृथिवीतले।
अवतीर्य हविष्यामि वैप्रचित्तांस्तु दानवान् ॥ 43 ॥

भक्ष्य यन्त्याश्च तानुग्रान् वैप्रचित्तान् महासुरान्।
रक्तदन्ता भविष्यन्ति दाडिमीकुसुमोपमाः ॥ 44 ॥

ततो मां देवताः स्वर्गे मर्त्यलोके च मानवाः।
स्तुवन्तो व्याहरिष्यन्ति सततं रक्तदन्तिकाम् ॥ 45 ॥

भूयश्च शतवार्षिक्याम् अनावृष्ट्यामनम्भसि।
मुनिभिः संस्तुता भूमौ सम्भविष्याम्ययोनिजा ॥ 46 ॥

ततः शतेन नेत्राणां निरीक्षिष्याम्यहं मुनीन्
कीर्तियिष्यन्ति मनुजाः शताक्षीमिति मां ततः ॥ 47 ॥

ततो‌உ हमखिलं लोकमात्मदेहसमुद्भवैः।
भरिष्यामि सुराः शाकैरावृष्टेः प्राण धारकैः ॥ 48 ॥

शाकम्भरीति विख्यातिं तदा यास्याम्यहं भुवि।
तत्रैव च वधिष्यामि दुर्गमाख्यं महासुरम् ॥ 49 ॥

दुर्गादेवीति विख्यातं तन्मे नाम भविष्यति।
पुनश्चाहं यदाभीमं रूपं कृत्वा हिमाचले ॥ 50 ॥

रक्षांसि क्षययिष्यामि मुनीनां त्राण कारणात्।
तदा मां मुनयः सर्वे स्तोष्यन्त्यान म्रमूर्तयः ॥ 51 ॥

भीमादेवीति विख्यातं तन्मे नाम भविष्यति।
यदारुणाख्यस्त्रैलोक्ये महाबाधां करिष्यति ॥ 52 ॥

तदाहं भ्रामरं रूपं कृत्वासज्ख्येयषट्पदम्।
त्रैलोक्यस्य हितार्थाय वधिष्यामि महासुरम् ॥ 53 ॥

भ्रामरीतिच मां लोका स्तदास्तोष्यन्ति सर्वतः।
इत्थं यदा यदा बाधा दानवोत्था भविष्यति ॥ 54 ॥

तदा तदावतीर्याहं करिष्याम्यरिसङ्क्षयम् ॥ 55 ॥

॥ स्वस्ति श्री मार्कण्डेय पुराणे सावर्निके मन्वन्तरे देवि महत्म्ये नारायणीस्तुतिर्नाम एकादशो‌உध्यायः समाप्तम् ॥

आहुति
ॐ क्लीं जयन्ती साङ्गायै सशक्तिकायै सपरिवारायै सवाहनायै लक्ष्मीबीजाधिष्तायै गरुडवाहन्यै नारयणी देव्यै-महाहुतिं समर्पयामि नमः स्वाहा ॥

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॥ Devi Mahatmyam Durga Saptasati Chapter 11 Stotram in English


narayanistutirnama ekadaso‌உdhyayah ॥

dhyanam
om balarkavidyutim indukiritam tungakucam nayanatrayayuktam ।
smeramukhim varadankusapasabhitikaram prabhaje bhuvanesim ॥

rsiruvaca ॥ 1 ॥

devya hate tatra mahasurendre
sendrah sura vahnipurogamastam।
katyayanim tustuvuristalabha-
dvikasivaktrabja vikasitasah ॥ 2 ॥

devi prapannartihare prasida
prasida matarjagato‌உbhilasya।
prasidavisvesvari pahivisvam
tvamisvari devi caracarasya ॥ 3 ॥

adhara bhuta jagatastvameka
mahisvarupena yatah sthitasi
apam svarupa sthitaya tvayaita
dapyayate krtsnamalanghya virye ॥ 4 ॥

tvam vaisnavisaktiranantavirya
visvasya bijam paramasi maya।
sammohitam devisamasta metat-
ttvam vai prasanna bhuvi muktihetuh ॥ 5 ॥

vidyah samastastava devi bhedah।
striyah samastah sakala jagatsu।
tvayaikaya puritamambayaitat
kate stutih stavyaparaparoktih ॥ 6 ॥

sarva bhuta yada devi bhukti muktipradayini।
tvam stuta stutaye ka va bhavantu paramoktayah ॥ 7 ॥

sarvasya buddhirupena janasya hrdi samsthite।
svargapavargade devi narayani namo‌உstute ॥ 8 ॥

kalakasthadirupena parinama pradayini।
visvasyoparatau sakte narayani namostute ॥ 9 ॥

sarva mangala mangalye sive sarvartha sadhike।
saranye trayambake gauri narayani namo‌உstute ॥ 10 ॥

srstisthitivinasanam saktibhute sanatani।
gunasraye gunamaye narayani namo‌உstute ॥ 11 ॥

saranagata dinarta paritranaparayane।
sarvasyartihare devi narayani namo‌உstute ॥ 12 ॥

hamsayukta vimanasthe brahmani rupadharini।
kausambhah ksarike devi narayani namo‌உstute ॥ 13 ॥

trisulacandrahidhare mahavrsabhavahini।
mahesvari svarupena narayani namo‌உstute ॥ 14 ॥

mayura kukkutavrte mahasaktidhare‌உnaghe।
kaumarirupasamsthane narayani namostute ॥ 15 ॥

sankhacakragadasarngagrhitaparamayudhe।
prasida vaisnavirupenarayani namo‌உstute ॥ 16 ॥

grhitogramahacakre damstroddhrtavasundhare।
varaharupini sive narayani namostute ॥ 17 ॥

nrsimharupenogrena hantum daityan krtodyame।
trailokyatranasahite narayani namo‌உstute ॥ 18 ॥

kiritini mahavajre sahasranayanojjvale।
vrtrapranahare caindri narayani namo‌உstute ॥ 19 ॥

sivadutisvarupena hatadaitya mahabale।
ghorarupe maharave narayani namo‌உstute ॥ 20 ॥

damstrakarala vadane siromalavibhusane।
camunde mundamathane narayani namo‌உstute ॥ 21 ॥

laksmi lajje mahavidhye sraddhe pusti svadhe dhruve।
maharatri mahamaye narayani namo‌உstute ॥ 22 ॥

medhe sarasvati vare bhuti babhravi tamasi।
niyate tvam prasidese narayani namo‌உstute ॥ 23 ॥

sarvasvarupe sarvese sarvasaktisamanvite।
bhayebhyastrahi no devi durge devi namo‌உstute ॥ 24 ॥

etatte vadanam saumyam locanatrayabhusitam।
patu nah sarvabhutebhyah katyayini namo‌உstute ॥ 25 ॥

jvalakaralamatyugramasesasurasudanam।
trisulam patu no bhitirbhadrakali namo‌உstute ॥ 26 ॥

hinasti daityatejamsi svanenapurya ya jagat।
sa ghanta patu no devi papebhyo nah sutaniva ॥ 27 ॥

asurasrgvasapankacarcitaste karojvalah।
subhaya khadgo bhavatu candike tvam nata vayam ॥ 28 ॥

roganasesanapahamsi tusta
rusta tu kama sakalanabhistan
tvamasritanam na vipannaranam।
tvamasrita srayatam prayanti ॥ 29 ॥

etatkrtam yatkadanam tvayadya
darmadvisam devi mahasuranam।
rupairanekairbhahudhatmamurtim
krtvambhike tatprakaroti kanya ॥ 30 ॥

vidyasu sastresu viveka dipe
svadyesu vakyesu ca ka tvadanya
mamatvagarte‌உti mahandhakare
vibhramayatyetadativa visvam ॥ 31 ॥

raksamsi yatro gravisasca naga
yatrarayo dasyubalani yatra।
davanalo yatra tathabdhimadhye
tatra sthita tvam paripasi visvam ॥ 32 ॥

visvesvari tvam paripasi visvam
visvatmika dharayasiti visvam।
visvesavandhya bhavati bhavanti
visvasraya yetvayi bhaktinamrah ॥ 33 ॥

devi prasida paripalaya no‌உri
bhiternityam yathasuravadadadhunaiva sadyah।
papani sarva jagatam prasamam nayasu
utpatapakajanitamsca mahopasargan ॥ 34 ॥

pranatanam prasida tvam devi visvarti harini।
trailokyavasinamidye lokanam varada bhava ॥ 35 ॥

devyuvaca ॥ 36 ॥

varadaham suragana param yanmanaseccatha।
tam vrnudhvam prayacchami jagatamupakarakam ॥ 37 ॥

deva ucuh ॥ 38 ॥

sarvabadha prasamanam trailokyasyakhilesvari।
evameva tvayakarya masmadvairi vinasanam ॥ 39 ॥

devyuvaca ॥ 40 ॥
vaivasvate‌உntare prapte astavimsatime yuge।
sumbho nisumbhascaivanyavutpatsyete mahasurau ॥ 41 ॥

nandagopagrhe jata yasodagarbha sambhava।
tatastaunasayisyami vindhyacalanivasini ॥ 42 ॥

punarapyatiraudrena rupena prthivitale।
avatirya havisyami vaipracittamstu danavan ॥ 43 ॥

bhaksya yantyasca tanugran vaipracittan mahasuran।
raktadanta bhavisyanti dadimikusumopamah ॥ 44 ॥

tato mam devatah svarge martyaloke ca manavah।
stuvanto vyaharisyanti satatam raktadantikam ॥ 45 ॥

bhuyasca satavarsikyam anavrstyamanambhasi।
munibhih samstuta bhumau sambhavisyamyayonija ॥ 46 ॥

tatah satena netranam niriksisyamyaham munin
kirtiyisyanti manujah sataksimiti mam tatah ॥ 47 ॥

tato‌உ hamakhilam lokamatmadehasamudbhavaih।
bharisyami surah sakairavrsteh prana dharakaih ॥ 48 ॥

sakambhariti vikhyatim tada yasyamyaham bhuvi।
tatraiva ca vadhisyami durgamakhyam mahasuram ॥ 49 ॥

durgadeviti vikhyatam tanme nama bhavisyati।
punascaham yadabhimam rupam krtva himacale ॥ 50 ॥

raksamsi ksayayisyami muninam trana karanat।
tada mam munayah sarve stosyantyana mramurtayah ॥ 51 ॥

bhimadeviti vikhyatam tanme nama bhavisyati।
yadarunakhyastrailokye mahabadham karisyati ॥ 52 ॥

tadaham bhramaram rupam krtvasajkhyeyasatpadam।
trailokyasya hitarthaya vadhisyami mahasuram ॥ 53 ॥

bhramaritica mam loka stadastosyanti sarvatah।
ittham yada yada badha danavottha bhavisyati ॥ 54 ॥

tada tadavatiryaham karisyamyarisanksayam ॥ 55 ॥
॥ svasti sri markandeya purane savarnike manvantare devi mahatmye narayanistutirnama ekadaso‌உdhyayah samaptam ॥

ahuti
om klim jayanti sangayai sasaktikayai saparivarayai savahanayai laksmibijadhistayai garudavahanyai narayani devyai-mahahutim samarpayami namah svaha ॥