Sri Dakshinamurthy Stotram 4 In Sanskrit

॥ Sri Dakshinamurthy Stotram 4 Sanskrit Lyrics ॥

॥ श्री दक्षिणामूर्ति स्तोत्रम् – ४ ॥
मन्दस्मित स्फुरित मुग्धमुखारविन्द
कन्दर्पकोटि शतसुन्दरदिव्यमूर्तिम् ।
आताम्रकोमल जटाघटितेन्दुलेख-
मालोकये वटतटी निलयं दयलुम् ॥ १ ॥

कन्दलित बोधमुद्रं कैवल्यानन्द संविदुन्निद्रम् ।
कलये कञ्चनरुद्रं करुणारसपूरपूरित समुद्रम् ॥ २ ॥

ओं जय देव महादेव जय कारुण्यविग्रह ।
जय भूमिरुहावास जय वीरासनस्थित ॥ ३ ॥

जय कुन्देन्दु पाटीर पाण्डुराङ्गागजपते ।
जय विज्ञानमुद्राऽक्षमाला वीणा लसत्कर ॥ ४ ॥

जयेतर करन्यस्त पुस्तकास्त रजस्तमः ।
जयापस्मार निक्षिप्त दक्षपाद सरोरुह ॥ ५ ॥

जय शार्दूल चर्मैक परिधान लसत्कटे ।
जय मन्दस्मितोदार मुखेन्दु स्फुरिताकृते ॥ ६ ॥

जयान्तेवासिनिकरै-रावृतानन्दमन्दर ।
जय लीलाजितानङ्ग जय मङ्गल वैभव ॥ ७ ॥

जय तुङ्गपृथूरस्क जय सङ्गीतलोलुप ।
जय गङ्गाधरासङ्ग जय शृङ्गारशेखर ॥ ८ ॥

जयोत्सङ्गानुषङ्गार्य जयोत्तुङ्ग नगालय ।
जयापाङ्गैक निर्दग्ध त्रिपुरामरवल्लभ ॥ ९ ॥

जय पिङ्ग जटाजूट घटितेन्दु करामर ।
जय जातु प्रपन्नार्ति प्रपाटन पटूत्तम ॥ १० ॥

जय विद्योत्पलोल्लासि निशाकर परावर ।
जयाविद्यान्धतमस-ध्वंसनोद्भासि भास्कर ॥ ११ ॥

जय संसृति कान्तार कुठारासुरसूदन ।
जय संसार सावित्र तापतापित पादप ॥ १२ ॥

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जय दोषविषालीढ मृतसञ्जीवनौषध ।
जय कर्तव्य दावाग्नि दग्धान्तर सुधाम्बुधे ॥ १३ ॥

जयासूयार्णवामग्न जनतारण नाविक ।
जयाहन्ताक्षि रोगाणामतिलोक सुखाञ्जन ॥ १४ ॥

जयाशाविषवल्लीनां-मूलमालानिकृन्तन ।
जयाघ तृणकूटानाममन्द ज्वलितानल ॥ १५ ॥

जय मायामदेभश्री विदारण मृगोत्तम ।
जय भक्त जनस्वान्त चन्द्रकान्तैक चन्द्रमाः ॥ १६ ॥

जय सन्त्यक्तसर्वाश मुनिकोक दिवाकर ।
जयाचलसुता-चारुमुखचन्द्र-चकोरक ॥ १७ ॥

जयाद्रिकन्यकोत्तुङ्ग कुचाचल विहङ्गम ।
जय हैमवती मञ्जु मुखपङ्कज बम्भर ॥ १८ ॥

जय कात्यायनी स्निग्ध चित्तोत्पल सुधाकर ।
जयाखिल हृदाकाश लसद्द्युमणिमण्डल ॥ १९ ॥

जयासङ्ग सुखोत्तुङ्ग सौधक्रीडन भूमिप ।
जय संवित्सभासीम नटनोत्सुक नर्तक ॥ २० ॥

जयानवधि बोधाब्धि केलिकौतुक भूपते ।
जय निर्मल चिद्व्योम्नि चारुद्योतित नीरद ॥ २१ ॥

जयानन्द सदुद्यान लीलालोलुप कोकिल ।
जयागम शिरोरण्यविहार वरकुञ्जर ॥ २२ ॥

जय प्रणव माणिक्य पञ्जरान्तश्शुकाग्रणीः ।
जय सर्वकलावार्धि तुषार करमण्डल ॥ २३ ॥

जयाणिमादिभूतीनां शरण्याखिल पुण्यभूः ।
जय स्वभाव भासैव विभासित जगत्त्रय ॥ २४ ॥

जय खादि धरित्र्यन्त जगज्जन्मादिकारण ।
जयाशेष जगज्जाल कलाकलनवर्जित ॥ २५ ॥

जय मुक्तजनप्राप्य सत्यज्ञान सुखाकृते ।
जय दक्षाध्वरध्वंसिन् जय मोक्षफलप्रद ॥ २६ ॥

जय सूक्ष्म जगद्व्यापिन् जय साक्षिन् चिदात्मक ।
जय सर्पकुलाकल्प जयानल्प गुणार्णव ॥ २७ ॥

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जय कन्दर्पलावण्य दर्पनिर्भेदन प्रभो ।
जय कर्पूरगौराङ्ग जय कर्मफलाश्रय ॥ २८ ॥

जय कञ्जदलोत्सेक-भञ्जनोद्यतलोचन ।
जय पूर्णेन्दुसौन्दर्य गर्वनिर्वापणानन ॥ २९ ॥

जय हास श्रियोदस्त शरच्चन्द्र महाप्रभ ।
जयाधर विनिर्भिन्न बिम्बारुणिम विभ्रम ॥ ३० ॥

जय कम्बु विलासश्री धिक्कारि वरकन्धर ।
जय मञ्जुलमञ्जीररञ्जित श्रीपदाम्बुज ॥ ३१ ॥

जय वैकुण्ठसम्पूज्य जयाकुण्ठमते हर ।
जय श्रीकण्ठ सर्वज्ञ जय सर्वकलानिधे ॥ ३२ ॥

जय कोशातिदूरस्थ जयाकाशशिरोरुह ।
जय पाशुपतध्येय जय पाशविमोचक ॥ ३३ ॥

जय देशिक देवेश जय शम्भो जगन्मय ।
जय शर्व शिवेशान जय शङ्कर शाश्वत ॥ ३४ ॥

जयोङ्कारैकसंसिद्ध जय किङ्करवत्सल ।
जय पङ्कज जन्मादि भाविताङ्घ्रियुगाम्बुज ॥ ३५ ॥

जय भर्ग भव स्थाणो जय भस्मावकुण्ठन ।
जय स्तिमित गम्भीर जय निस्तुलविक्रम ॥ ३६ ॥

जयास्तमितसर्वाश जयोदस्तारिमण्डल ।
जय मार्ताण्डसोमाग्नि-लोचनत्रय मण्डित ॥ ३७ ॥

जय गण्डस्थलादर्श बिम्बितोद्भासिकुण्डल ।
जय पाषण्डजनता दण्डनैकपरायण ॥ ३८ ॥

जयाखण्डितसौभाग्य जय चण्डीशभावित ।
जयानन्तान्त कान्तैक जय शान्तजनेडित ॥ ३९ ॥

जय त्रय्यन्त संवेद्य जयाङ्ग त्रितयातिग ।
जय निर्भेदबोधात्मन् जय निर्भावभावित ॥ ४० ॥

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जय निर्द्वन्द्व निर्दोष जयाद्वैतसुखाम्बुधे ।
जय नित्यनिराधार जय निष्कल निर्गुण ॥ ४१ ॥

जय निष्क्रिय निर्माय जय निर्मल निर्भय ।
जय निश्शब्द निस्स्पर्श जय नीरूप निर्मल ॥ ४२ ॥

जय नीरस निर्गन्ध जय निस्पृह निश्चल ।
जय निस्सीम भूमात्मन् जय निष्पन्द नीरधे ॥ ४३ ॥

जयाच्युत जयातर्क्य जयानन्य जयाव्यय ।
जयामूर्त जयाचिन्त्य जयाग्राह्य जयाद्भुत ॥ ४४ ॥

इति श्री देशिकेन्द्रस्य स्तोत्रं परमपावनम् ।
पुत्रपौत्त्रायुरारोग्य-सर्वसौभाग्यवर्धनम् ॥ ४५ ॥

सर्वविद्याप्रदं सम्यगपवर्गविधायकम् ।
यः पठेत्प्रयतो भूत्वा ससर्वफलमश्नुते ॥ ४६ ॥

दाक्षायणीपति दयार्द्र निरीक्षणेन
साक्षादवैति परतत्वमिहैवधीरः ।
न स्नान दान जप होम सुरार्चनादि-
धर्मैरशेषनिगमान्त निरूपणैर्वा ॥ ४७ ॥

अवचनचिन्मुद्राभ्यामद्वैतं बोधमात्रमात्मानम् ।
ब्रूते तत्र च मानं पुस्तक भुजगाग्निभिर्महादेवः ॥ ४८ ॥

कटिघटित करटिकृत्तिः कामपि मुद्रां प्रदर्शयन् जटिलः ।
स्वालोकिनः कपाली हन्तमनोविलयमातनोत्येकः ॥ ४९ ॥

श्रुतिमुखचन्द्रचकोरं नतजनदौरात्म्यदुर्गमकुठारम् ।
मुनिमानससञ्चारं मनसा प्रणतोऽस्मि देशिकमुदारम् ॥ ५० ॥

इति श्रीपरमहंस परिव्राजकाचार्यवर्य श्रीसदाशिव ब्रह्मेन्द्रविरचितं श्री दक्षिणामूर्ति स्तोत्रम् ।

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