॥ Jina Suprabhat Ashtakam Sanskrit Lyrics ॥
॥ जिनसुप्रभाताष्टकम् ॥
पण्डित श्रीहीरालाल जैन, सिद्धान्तशास्त्री
चन्द्रार्कशक्रहरविष्णुचतुर्मुखाद्यां-
स्तीक्ष्णैः स्वबाणनिकरैर्विनिहत्य लोके ।
व्यजाजृम्भितेऽहमिति नास्ति परोऽत्र कश्चि-
त्तं मन्मथं जितवतस्तव सुप्रभातम् ॥ १ ॥
(इस संसार में जिस कामदेव ने अपने तीक्ष्ण बाणों के द्वारा चन्द्र
सूर्य, इन्द्र, महेश, विष्णु, ब्रह्मा आदि को आहत करके घोषणा
की थी कि “मैं ही सबसे बड़ा हूं, मेरे से बड़ा इस लोक
में और कोई नहीं है,” उस कामदेव को भी जीतने वाले
जिनदेव ! तुम्हारा यह सुप्रभात मेरे लिये मंगलमय हो ॥ १ ॥)
गन्धर्व-किन्नर-महोरग दैत्यनाथ-
विद्याधरामरनरेन्द्रसमर्चिताङ्घ्रिः ।
सङ्गीयते प्रथिततुम्बरनारदैश्च
कीर्तिः सदैव भुवने मम सुप्रभातम् ॥ २ ॥
(जिनके चरण-कमल गन्धर्व, किन्नर, महोरग, असुरेन्द्र,
विद्याधर, देवेन्द्र और नरेन्द्रों से पूजित हैं, जिनकी
उज्ज्वल कीर्ति संसार में प्रसिद्ध तुम्बर जाति के यक्षों और
नारदों से सदा गाई जाती है, उन श्री जिनदेव का यह सुप्रभात
मेरे लिए मंगलमय हो ॥ २ ॥)
अज्ञानमोहतिमिरौघविनाशकस्य
संज्ञानचारुकिरणावलिभूषितस्य ।
भव्याम्बुजानि नियतं प्रतिबोधकस्य,
श्रीमज्जिनेन्द्र विमलं तव सुप्रभातम् ॥ ३ ॥
(अज्ञान और मोहरूप अन्धकार-समूह के विनाशक, उत्तम
सम्यग्ज्ञानरूप सूर्य की सुन्दर किरणावली से विभूषित और
भव्यजीव रूप कमलों के नियम से प्रतिबोधक हे श्रीमान्
जिनेन्द्रदेव ! तुम्हारा यह विमल सुप्रभात मेरे लिए
मंगलमय हो ॥ ३ ॥)
तृष्णा-क्षुधा-जनन-विस्मय-राग-मोह-
चिन्ता-विषाद-मद-खेद-जरा-रुजौघाः ।
प्रस्वेद-मृत्यु-रति-रोष-भयानि निद्रा
देहे न सन्ति हि यतस्तव सुप्रभातम् ॥ ४ ॥
(जिनके देह में तृष्णा, क्षुधा, जन्म, विस्मय, राग,
मोह, चिन्ता, विषाद, मद, खेद, जरा, रोगपुंज,
पसेव मरण, रति, रोष, भय और निद्रा ये अठारह दोष
नहीं हैं, ऐसे हे जिनेन्द्रदेव, तुम्हारा यह निर्मल प्रभात
मेरे लिये मंगलमय हो ॥ ४ ॥)
श्वेतातपत्र-हरिविष्टर-चामरौघाः
भामण्डलेन सह दुन्दुभि-दिव्यभाषा- ।
शोकाग्र-देवकरविमुक्तसुपुष्पवृष्टि-
र्देवेन्द्रपूजिततवस्तव सुप्रभातम् ॥ ५ ॥
(जिसके श्वेत छत्र, सिंहासन, चामर-समूह, भामण्डल,
दुन्दुभि-नाद, दिव्यध्वनि, अशोकवृक्ष और देव-हस्त-मुक्त
पुष्पवर्षा ये आठ प्रातिहार्य पाये जाते हैं, और जो देवों के इन्द्रों
से पूजित हैं, ऐसे हे जिनदेव, तुम्हारा यह सुप्रभात मेरे लिए
मंगलमय हो ॥ ५ ॥)
भूतं भविष्यदपि सम्प्रति वर्तमान-
ध्रौव्यं व्ययं प्रभवमुत्तममप्यशेषम् ।
त्रैलोक्यवस्तुविषयं सचिरोषमित्थं
जानासि नाथ युगपत्तव सुप्रभातम् ॥ ६ ॥
( हे नाथ, आप भूत, भविष्यत् और वर्तमानकाल सम्बन्धी
त्रैलोक्य-गत समस्त वस्तु-विषय के ध्रौव्य व्यय और उत्पादरूप
अनन्त पर्यायों को एक साथ जानते हैं, ऐसे अद्वितीय ज्ञान वाले
आपका यह सुप्रभात मेरे लिये मंगलमय हो ॥ ६ ॥)
स्वर्गापवर्गसुखमुत्तममव्ययं यत्-
तद्देहिनां सुभजतां विदधाति नाथ ।
हिंसाऽनृतान्यवनितापररिक्षसेवा
सत्याममे न हि यतस्तव सुप्रभातम् ॥ ७ ॥
( हे नाथ, जो प्राणी आपकी विधिपूर्वक सेवा उपासना करते हैं, उन्हें
आप स्वर्ग और मोक्ष के उत्तम और अव्यय सुख देते हो । तथा
स्वयं हिंसा, झूठ, चोरी, पर-वनिता-सेवा, कुशील और
परधन-सेवा (परिग्रह) रूप सर्व प्रकार के पापों से सर्वथा विमुक्त
एवं ममत्व-रहित हो, ऐसे वीतराग भगवान् का यह सुप्रभात मेरे
लिए सदा मंगलमय हो ॥ ७ ॥)
संसारघोरतरवारिधियानपात्र,
दुष्टाष्टकर्मनिकरेन्धनदीप्तवह्ने ।
अज्ञानमूलमनसां विमलैकचक्षुः
श्रीनेमिचन्द्रयतिनायक सुप्रभातम् ॥ ८ ॥
(हे भगवन्, आप इस अतिघोर संसार-सागर से पार उतारने के लिये
जहाज हैं, दुष्ट अष्ट कर्मसमूह ईन्धन को भस्म करने के
लिये प्रदीप्त अग्नि हैं, और अज्ञान से भरपूर मनवाले जीवों के
लिये अद्वितीय विमल नेत्र हैं, ऐसे हे मुनिनायक नेमिचन्द्र तुम्हारा
यह सुप्रभात मेरे लिए मंगलमय हो । स्तुतिकार ने अन्तिम चरण
में अपना नाम भी प्रकट कर दिया है ॥ ८ ॥)
इति नेमिचन्द्ररचितं जिनसुप्रभाताष्टकं सम्पूर्णम् ।
सुविचार –
जो काम कभी भी हो सकता है वह कभी भी नहीं हो सकता है । जो
काम अभी होगा वही होगा । जो शक्ति आज के काम को कल पर टालने में
खर्च हो जाती है, उसी शक्ति द्वारा आज का काम आज ही हो सकता है ।
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