॥ Sri Krishnashtakam 5 Sanskrit Lyrics ॥
॥ श्रीकृष्णाष्टकम् ५ ॥
(श्री वादिराज तीर्थ कृतम्)
॥ अथ श्री कृष्णाष्टकम् ॥
मध्वमानसपद्मभानुसमम् स्मर प्रतिसंस्मरम्
स्निग्धनिर्मलशीतकान्तिलसन्मुखम् करुणोन्मुखम् ।
हृदयकम्बुसमानकन्धरमक्षयम् दुरितक्षयम्
स्निग्धसंस्तुत रौप्यपीठकृतालयम् हरिमालयम् ॥ १ ॥
अंगदादिसुशोभिपाणियुगेन सम्क्षुभितैनसम्
तुंगमाल्यमणीन्द्रहारसरोरसम् खलनीरसम् ।
मंगलप्रदमन्थदामविराजितम् भजताजितम्
तम् गृणेवररौप्यपीठकृतालयम् हरिमालयम् ॥ २ ॥
पीनरम्यतनूदरम् भज हे मनः शुभ हे मनः
स्वानुभावनिदर्शनाय दिशन्तमार्थिशु शन्तमम् ।
आनतोस्मि निजार्जुनप्रियसाधकम् खलबाधकम्
हीनतोज्झितरौप्यपीठकृतालयम् हरिमालयम् ॥ ३ ॥
हेमकिंकिणिमालिकारसनांचितम् तमवंचितम्
रत्नकांचनवस्त्रचित्रकटिम् घनप्रभया घनम् ।
कम्रनागकरोपमूरुमनामयम् शुभधीमयम्
नौम्यहम् वररौप्यपीठकृतालयम् हरिमालयम् ॥ ४ ॥
वृत्तजानुमनोजजंघममोहदम् परमोहदम्
रत्नकल्पनखत्विशा हृतमुत्तमः स्तुतिमुत्तमम् ।
प्रत्यहम् रचितार्चनम् रमया स्वयागतया स्वयम्
चित्त चिन्तय रौप्यपीठकृतालयम् हरिमालयम् ॥ ५ ॥
चारुपादसरोजयुग्मरुचामरोच्चयचामरो
दारमूर्धजभारमन्दलरंजकम् कलिभंजकम् ।
वीरतोचितभूशणम् वरनूपुरम् स्वतनूपुरम्
धारयात्मनि रौप्यपीठ कृतलयम् हरिमालयम् ॥ ६ ॥
शुष्कवादिमनोतिदूरतरागमोत्सवदागमम्
सत्कवीन्द्रवचोविलासमहोदयम् महितोदयम् ।
लक्षयामि यतीस्वरैः कृतपूजनम् गुणभाजनम्
धिक्कृतोपमरौप्यपीठकृतालयम् हरिमालयम् ॥ ७ ॥
नारदप्रियमाविशाम्बुरुहेक्क्षणम् निजलक्षणम्
द्वारकोपमचारुदीपरुचान्तरे गतचिन्त रे ।
(तारकोपमचारुदीपरुचान्तरे गतचिन्त रे । )
धीरमानसपूर्णचन्द्रसमानमच्युतमानम
द्वारकोपमरौप्यपीठकृतालयम् हरिमालयम् ॥ ८ ॥
फल-श्रुतिः
रौप्यपीठकृतालयस्य हरेः प्रियम् दुरिताप्रियम्
तत्पदार्चकवादिराजयतीरितम् गुणपूरितम् ।
गोप्यमष्टकमेतदुच्चमुदे मम त्विह निर्मम-
(गोप्यमष्टकमेतदुच्चमुदे भवत्विह निर्मम-)
प्राप्यशुद्धफलाय तत्र सुकोमलम् हतधीमलम्
प्राप्यसौख्यफलाय तत्र सुकोमलम् हतधीमलम् ॥ ९ ॥
॥ श्री कृष्णार्पणमस्तु ॥
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