108 Names Of Bilva Patra In Marathi

॥ 108 Names of Bilva Patra in Marathi ॥

॥ बिल्वाष्टोत्तर शतनामावलि, बिल्व १०८ णामावलि ॥
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रियायुधम.ह .
त्रिजन्म पापसंहारम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 1 ॥

त्रिशाखैः बिल्व पत्रैश्च अश्छिद्रैः कोमलैः शुभैः .
तव पूजां करिष्यामि एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 2 ॥

सर्वत्रैलोक्य कर्तारं सर्वत्रैलोक्य पालनम.ह .
सर्वत्रैलोक्य हर्तारम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 3 ॥

नागाधिराजवलयं नागहारेणभूषितम.ह .
नागकुन्डलसंयुक्तम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 4 ॥

अक्शमालाधरं रुद्रं पार्वती प्रियवल्लभम.ह .
चन्द्रशेखरमीशानम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 5 ॥

त्रिलोचनं दशभुजं दुर्गादेहार्धधारिणम.ह.
विभूत्यभ्यर्चितं दीवं एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 6 ॥

त्रिशूलधारिणं दीवं नागाभरणसुन्दरम.ह .
चन्द्रशेखरमीशानम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 7 ॥

गङ्गाधराम्बिकानाथं फणिकुण्डलमण्डितम.ह .
कालकालं गिरीशं च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 8 ॥

शुद्धस्फटिक संकाशं शितिकंठं कृपानिधिम.ह .
सर्वेश्वरं सदाशान्तम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 9 ॥

सच्चिदानन्दरूपं च परानन्दमयं शिवम.ह .
वागीश्वरं चिदाकाशं एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 10 ॥

शिपिविष्टं सहस्राशं कैलासाचलवासिनम.ह .
हिरण्यबाहुं सेनान्यम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 11 ॥

अरुणं वामनं तारं वास्तव्यं चैव वास्तवम.ह .
ज्येष्टं कनिष्ठं गौरीशम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 12 ॥

हरिकेशं सनन्दीशम उच्च्हैर्घोषं सनातनम.ह .
अघोररूपकं कुंभम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 13 ॥

पूर्वजावरजं याम्यं सूश्म तस्करनायकम.ह .
नीलकंठं जघंन्यंच एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 14 ॥

सुराश्रयं विषहरं वर्मिणं च वरूधिनम
महासेनं महावीरम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 15 ॥

कुमारं कुशलं कूप्यं वदान्यञ्च महारधम.ह .
तौर्यातौर्यं च देव्यं च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 16 ॥

दशकर्णं ललाटाशं पञ्चवक्त्रं सदाशिवम.ह .
अशेषपापसंहारम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 17 ॥

नीलकण्ठं जगद्वंद्यं दीननाथं महेश्वरम.ह .
महापापसंहारम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 18 ॥

चूडामणीकृतविभुं वलयीकृतवासुकिम.ह .
कैलासवासिनं भीमम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 19 ॥

कर्पूरकुंदधवलं नरकार्णवतारकम.ह .
करुणामृतसिंधुं च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 20 ॥

महादेवं महात्मानं भुजङ्गाधिप कङ्कणम.ह .
महापापहरं देवम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 21 ॥

भूतेशं खण्डपरशुं वामदेवं पिनाकिनम.ह .
वामे शक्तिधरं श्रेष्ठम एक बिल्वं शिवार्पणम ॥ 22 ॥

फालेशणं विरूपाशं श्रीकंठं भक्तवत्सलम.ह .
नीललोहितखट्वाङ्गम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 23 ॥

कैलासवासिनं भीमं कठोरं त्रिपुरान्तकम.ह .
वृषाङ्कं वृषभारूढम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 24 ॥

सामप्रियं सर्वमयं भस्मोद्धूलित विग्रहम.ह .
मृत्युञ्जयं लोकनाथम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 25 ॥

दारिद्र्यदुःखहरणं रविचन्द्रानलेशणम.ह .
मृगपाणिं चन्द्रमौळिम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 26 ॥

सर्वलोकभयाकारं सर्वलोकैकसाशिणम.ह .
निर्मलं निर्गुणाकारम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 27 ॥

सर्वतत्त्वात्मकं साम्बं सर्वतत्त्वविदूरकम.ह .
सर्वतत्त्वस्वरूपं च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 28 ॥

सर्वलोक गुरुं स्थाणुं सर्वलोकवरप्रदम.ह .
सर्वलोकैक नेत्रं च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 29 ॥

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मन्मथोद्धरणं शैवं भवभर्गं परात्मकम.ह .
कमलाप्रिय पूज्यंं च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 30 ॥

तेजोमयं महाभीमम उमेशं भस्मलेपनम.ह .
भवरोगविनाशं च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 31 ॥

स्वर्गापवर्गफलदं रघुनाथवरप्रदम.ह .
नगराजसुताकांतम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 32 ॥

मंजीरपादयुगलं शुभलशणलशितम.ह .
फणिराज विराजं च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 33 ॥

निरामयं निराधारं निस्सङ्गं निष्प्रपञ्चकम.ह .
तेजोरूपं महारौद्रम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 34 ॥

सर्वलोकैक पितरं सर्वलोकैक मातरम.ह .
सर्वलोकैक नाथं च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 35 ॥

चित्राम्बरं निराभासं वृषभेश्वर वाहनम.ह .
नीलग्रीवं चतुर्वक्त्रम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 36 ॥

रत्नकञ्चुकरत्नेशं रत्नकुण्डल मण्डितम.ह .
नवरत्न किरीटं च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 37 ॥

दिव्यरत्नाङ्गुली स्वर्णं कण्ठाभरणभूषितम.ह .
नानारत्नमणिमयम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 38 ॥

रत्नाङ्गुलीय विलसत्करशाखानखप्रभम.ह .
भक्तमानस गेहं च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 39 ॥

वामाङ्गभाग विलसदम्बिका वीशणप्रियम.ह .
पुण्डरीकनिभाशं च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 40 ॥

सम्पूर्णकामदं सौख्यं भक्तेष्टफलकारणम.ह .
सौभाग्यदं हितकरम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 41 ॥

नानाशास्त्रगुणोपेतं स्फुरन्मंगल विग्रहम.ह .
विद्याविभेदरहितम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 42 ॥

अप्रमेयगुणाधारं वेदकृद्रूप विग्रहम.ह .
धर्माधर्म प्रवृत्तं च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 43 ॥

गौरीविलाससदनं जीवजीवपितामहम.ह .
कल्पान्तभैरवं शुभ्रम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 44 ॥

सुखदं सुखनाशं च दुःखदं दुःखनाशनम.ह .
दुःखावतारं भद्रं च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 45 ॥

सुखरूपं रूपनाशं सर्वधर्म फलप्रदम.ह .
अतींद्रियं महामायम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 46 ॥

सर्वपशिमृगाकारं सर्वपशिमृगाधिपम.ह .
सर्वपशिमृगाधारम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 47 ॥

जीवाध्यशं जीववंद्यं जीवजीवनरशकम.ह .
जीवकृज्जीवहरणम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 48 ॥

विश्वात्मानं विश्ववंद्यं वज्रात्मावज्रहस्तकम.ह .
वज्रेशं वज्रभूषं च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 49 ॥

गणाधिपं गणाध्यशं प्रलयानलनाशकम.ह .
जितेन्द्रियं वीरभद्रम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 50 ॥

त्र्यम्बकं मृडं शूरं अरिषड्वर्गनाशनम.ह .
दिगम्बरं क्शोभनाशम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 51 ॥

कुन्देन्दु शंखधवलम भगनेत्रभिदुज्ज्वलम.ह .
कालाग्निरुद्रं सर्वज्ञम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 52 ॥

कम्बुग्रीवं कम्बुकंठं धैर्यदं धैर्यवर्धकम.ह .
शार्दूलचर्मवसनम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 53 ॥

जगदुत्पत्ति हेतुं च जगत्प्रलयकारणम.ह .
पूर्णानन्द स्वरूपं च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 54 ॥

सर्गकेशं महत्तेजं पुण्यश्रवण कीर्तनम.ह .
ब्रह्मांडनायकं तारम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 55 ॥

मन्दारमूलनिलयं मन्दारकुसुमप्रियम.ह .
बृन्दारकप्रियतरम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 56 ॥

महेन्द्रियं महाबाहुं विश्वासपरिपूरकम.ह .
सुलभासुलभं लभ्यम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 57 ॥

बीजाधारं बीजरूपं निर्बीजं बीजवृद्धिदम.ह .
परेशं बीजनाशं च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 58 ॥

युगाकारं युगाधीशं युगकृद्युगनाशनम.ह .
परेशं बीजनाशं च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 59 ॥

धूर्जटिं पिङ्गलजटं जटामण्डलमण्डितम.ह .
कर्पूरगौरं गौरीशम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 60 ॥

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सुरावासं जनावासं योगीशं योगिपुङ्गवम.ह .
योगदं योगिनां सिंहम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 61 ॥

उत्तमानुत्तमं तत्त्वम अंधकासुरसूदनम.ह .
भक्तकल्पद्रुमस्तोमम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 62 ॥

विचित्रमाल्यवसनं दिव्यचन्दनचर्चितम.ह .
विष्णुब्रह्मादि वंद्यं च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 63 ॥

कुमारं पितरं देवं श्रितचन्द्रकलानिधिम.ह .
ब्रह्मशत्रुं जगन्मित्रम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 64 ॥

लावण्यमधुराकारं करुणारसवारधिम.ह .
भ्रुवोर्मध्ये सहस्रार्चिम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 65 ॥

जटाधरं पावकाशं वृशेशं भूमिनायकम.ह .
कामदं सर्वदागम्यम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 66 ॥

शिवं शान्तं उमानाथं महाध्यानपरायणम.ह .
ज्ञानप्रदं कृत्तिवासम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 67 ॥

वासुक्युरगहारं च लोकानुग्रहकारणम.ह .
ज्ञानप्रदं कृत्तिवासम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 68 ॥

शशाङ्कधारिणं भर्गं सर्वलोकैकशङ्करम.ह .
शुद्धं च शाश्वतं नित्यम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 69 ॥

शरणागत दीनार्ति परित्राणपरायणम.ह .
गम्भीरं च वषट्कारम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 70 ॥

भोक्तारं भोजनं भोज्यं जेतारं जितमानस.ह .
करणं कारणं जिष्णुम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 71 ॥

क्शेत्रज्ञं क्शेत्रपालञ च परार्धैकप्रयोजनम.ह .
व्योमकेशं भीमवेषम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 72 ॥

भवज्ञं तरुणोपेतं चोरिष्टं यमनाशनम.ह .
हिरण्यगर्भं हेमाङ्गम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 73 ॥

दक्शं चामुण्डजनकं मोशदं मोशनायकम.ह .
हिरण्यदं हेमरूपम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 74 ॥

महाश्मशाननिलयं प्रच्च्हन्न स्फटिकप्रभम.ह .
वेदास्यं वेदरूप. च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 75 ॥

स्थिरं धर्मम उमानाथं ब्रह्मण्यं चाश्रयं विभुम.ह .
जगन्निवासं प्रथममेक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 76 ॥

रुद्राशमालाभरणं रुद्राशप्रियवत्सलम.ह .
रुद्राशभक्त संस्तोममेक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 77 ॥

फणीन्द्र विलसत्कंठं भुजङभरणप्रियम.ह .
दशाध्वर विनाशं च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 78 ॥

नागेन्द्र विलसत्कर्णं महीन्द्रवलयावृतम.ह .
मुनिवंद्यं मुनिश्रेष्ठमेक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 79 ॥

मृगेन्द्रचर्मवसनं मुनीनामेकजीवनम.ह .
सर्वदेवादि पूज्यं च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 80 ॥

निधनेशं धनाधीशम अपमृत्युविनाशनम.ह .
लिङ्गमूर्तिमलिङ्गात्मम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 81 ॥

भक्तकल्याणदं व्यस्तं वेदवेदांतसंस्तुतम.ह .
कल्पकृत्कल्पनाशं च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 82 ॥

घोरपातकदावाग्निं जन्मकर्मविवर्जितम.ह .
कपालमालाभरणम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 83 ॥

मातङ्गचर्मवसनं विराड्रूपविदारकम.ह .
विष्णुक्रांतमनंतं च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 84 ॥

यज्ञकर्मफलाध्यशं यज्ञविघ्नविनाशकम.ह .
यज्ञेशं यज्ञभोक्तारम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 85 ॥

कालाधीशं त्रिकालज्ञं दुष्टनिग्रहकारकम.ह .
योगिमानसपूज्यं च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 86 ॥

महोन्नतमहाकायं महोदरमहाभुजम.ह .
महावक्त्रं महावृद्धम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 87 ॥

सुनेत्रं सुललाटं च सर्वभीमपराक्रमम.ह .
महेश्वरं शिवतरम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 88 ॥

समस्तजगदाधारं समस्तगुणसागरम.ह .
सत्यं सत्यगुणोपेतम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 89 ॥

माघकृष्णचतुर्दश्यां पूजार्धं च जगद्गुरोः .
दुर्लभं सर्वदेवानाम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 90 ॥

तत्रापिदुर्लभं मन्येत नभोमासेन्दुवासरे .
प्रदोषकालेपूजायाम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 91 ॥

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तटाकंधननिशेपं ब्रह्मस्थाप्यं शिवालयम.ह
कोटिकन्यामहादानम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 92 ॥

दर्शनं बिल्ववृशस्य स्पर्शनं पापनाशनम.ह.
अघोरपापसंहारम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 93 ॥

तुलसीबिल्वनिर्गुण्डी जंबीरामलकं तथा .
पञ्चबिल्वमितिख्यातम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 94 ॥

अखण्डबिल्वपत्रैश्च पूजयेन्नंदिकेश्वरम.ह .
मुच्यते सर्वपापेभ्यः एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 95 ॥

सालंकृताशतावृत्ता कन्याकोटिसहस्रकम.ह .
साम्राज्यपृथ्वीदानं च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 96 ॥

दन्त्यश्वकोटिदानानि अश्वमेधसहस्रकम.ह .
सवत्सधेनुदानानि एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 97 ॥

चतुर्वेदसहस्राणि भारतादिपुराणकम.ह .
साम्राज्यपृथ्वीदानं च एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 98 ॥

सर्वरत्नमयं मेरुं काञ्चनं दिव्यवस्त्रकम.ह .
तुलाभागं शतावर्तम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 99 ॥

अष्टोत्तरश्शतं बिल्वं योर्चयेल्लिङ्गमस्तके .
अधर्वोक्तम अधेभ्यस्तु एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 100 ॥

काशीशेत्रनिवासं च कालभैरवदर्शनम.ह .
अघोरपापसंहारम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 101 ॥

अष्टोत्तरश्शतश्लोकैः स्तोत्राद्यैः पूजयेद्यधाः .
त्रिसंध्यं मोशमाप्नोति एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 102 ॥

दन्तिकोटिसहस्राणां भूः हिरण्यसहस्रकम.ह .
सर्वक्रतुमयं पुण्यम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 103 ॥

पुत्रपौत्रादिकं भोगं भुक्त्वाचात्रयधेप्सितम.ह .
अंतेज शिवसायुज्यम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 104 ॥

विप्रकोटिसहस्राणां वित्तदानाश्चयत्फलम.ह .
तत्फलं प्राप्नुयात्सत्यम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 105 ॥

त्वन्नामकीर्तनं तत्त्वतवपादाम्बुयः पिबेत.ह .
जीवन्मुक्तोभवेन्नित्यम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 106 ॥

अनेकदानफलदम अनन्तसुकृतादिकम.ह .
तीर्थयात्राखिलं पुण्यम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 107 ॥

त्वं मां पालय सर्वत्र पदध्यानकृतं तव .
भवनं शाङ्करं नित्यम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 108 ॥

उमयासहितं देवं सवाहनगणं शिवम.ह .
भस्मानुलिप्तसर्वाङ्गम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 109 ॥

सालग्रामसहस्राणि विप्राणां शतकोटिकम.ह .
यज्ञकोटिसहस्राणि एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 110 ॥

अज्ञानेन कृतं पापं ज्ञानेनाभिकृतं च यत.ह .
तत्सर्वं नाशमायात एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 111 ॥

अमृतोद्भववृशस्य महादेवप्रियस्य च .
मुच्यंते कंटकाघातात कंटकेभ्यो हि मानवाः ॥ 112 ॥

एकैकबिल्वपत्रेण कोटियज्ञफलं भवेत.ह .
महादेवस्य पूजार्थम एक बिल्वं शिवार्पणम.ह ॥ 113 ॥

एककाले पठेन्नित्यं सर्वशत्रुनिवारणम.ह .
द्विकालेच पठेन्नित्यं मनोरथफलप्रदम.ह .
त्रिकालेच पठेन्नित्यम आयुर्वर्ध्यो धनप्रदम.ह .
अचिरात्कार्यसिद्धिं च लभते नात्र संशयः ॥ 114 ॥

एककालं द्विकालं वा त्रिकालं यः पठेन्नरः .
लश्मीप्राप्तिश्शिवावासः शिवेन सह मोदते ॥ 115 ॥

कोटिजन्म कृतं पापम अर्चनेन विनश्यति .
सप्तजन्मकृतं पापं श्रवणेन विनश्यति .
जन्मान्तरकृतं पापं पठनेन विनश्यति .
दिवारात्रकृतं पापं दर्शनेन विनश्यति .
शणेशणेकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति .
पुस्तकं धारयेद्देहि आरोग्यं भयनाशनम.ह ॥ 116 ॥

इति बिल्वाश्ह्टोत्तर शतनामावलिः समाप्ता ..

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